उपलाणहिं जोइय करहुलउ ।
दावणु छोडहि जिम चरइ ।
जसु अखइणि समइं गयउ मणु ।
सो किम बुहु जगि रइ करइ ॥43॥
अन्वयार्थ : जिसप्रकार हाथी का बच्चा अथवा ऊँट कमल को देखकर अपना बन्धन तोड़कर विचरण करने लगते हैं, उसप्रकार जिसका मन अक्षयिनी-रामा (मुक्ति-रमणी) में लगा हुआ है ऐसा बुधजन जगत (संसार-बन्धन) में रति कैसे करे ?
(दूसरा अर्थ :) अक्षय ऐसी मोक्ष-सुन्दरी में जिसका चित्त लगा है, वह बुधजन संसार में रति क्‍यों करे ? अतः हे जीव! तू ऊँट के ऊपर पलान रख और उसके बन्धन खोल दे, जिससे कि वह मोक्ष की ओर आगे बढ़े ।