ढिल्लउ होहि म इंदियहं पंचहं विण्णि णिवारि ।
एक्क णिवारहि जीहडिय अण्ण पराइय णारि ॥44॥
अन्वयार्थ :
हे जीव ! पांच इन्द्रियों के सम्बन्ध में तू ढीला मत हो । इनमें भी दो का निवारण कर, एक तो जीभ को रोक ओर दूसरी पराई नारी को छोड़।