पंच बलद्द ण रक्खियईं ।
णंदणवणु ण गओ सि ।
अप्पु ण जाणिउ ण वि परु ।
वि एमइह पव्वइओ सि ॥45॥
अन्वयार्थ :
तुमने न तो पाँचों बैलों की रखवाली की और न नंदनवन में प्रवेश किया । तूने न तो आत्मा को जाना, न पर को जाना -- ऐसे ही सन्यासी बन बैठा !