पंचहिं बाहिरु णेहडउ हलि सहि लग्गु पियस्स ।
तासु ण दीसइ आगमणु जो खलु मिलिउ परस्स ॥46॥
अन्वयार्थ : हे सखी ! प्रियतम को तो बाहर में पांच का स्नेह लगा है; जो दुष्ट अन्य के साथ मिला हुआ है, उसका स्वघर में आगमन नहीं दिखता ।