वठ्टडिया अणुलग्गयहं अग्गउ जोयंताहं ।
कंटउ भग्गइ पाउ जइ भज्जउ दोसु ण ताहं ॥48॥
अन्वयार्थ : जो आगे देखता हुआ मार्ग में (ध्येय के सम्मुख) चल रहा है, उसके पैर में कदाचित्‌ कॉंट लग जाय तो लग जावे; इसमें उसका दोष नहीं है ।