सकलं विकलं चरणं, तत्सकलं सर्वसङ्गविरतानाम्
अनगाराणां विकलं, सागाराणां ससङ्गानाम् ॥50॥
अन्वयार्थ :
रे जीव ! तू देव का आराधन करता है, परन्तु तेरा परमेश्वर कहाँ चला गया ? जो शिव-कल्याणरूप परमेश्वर सर्वांग में विराज रहा है, उसको तू कैसे भूल गया ?