+ गाथा ५१-६० -
अम्मिए जो परु सो जि परु परु अप्पाण ण होइ ।
हउं डज्झउ सो उव्वरइ वलिवि ण जोवइ तो इ ॥51॥
अन्वयार्थ : अहो ! जो पर है सो पर ही है; पर कभी आत्मा नहीं होता । शरीर तो दग्ध होता है और आत्मा ऊपर चला जाता है, वह पीछे मुड़कर भी नहीं देखता ।