अण्णु तुहारउ णाणमउ लक्खिउ जाम ण भाउ ।
संकप्पवियप्पिउ णाणमउ दुड्ढउ चित्तु वराउ ॥56॥
अन्वयार्थ :
तेरा आत्मा ज्ञानमय है, उसके भाव को जबतक नहीं देखा, तबतक चित्त बेचारा दग्ध ओर संकल्प-विकल्प सहित अज्ञानरूप प्रवर्तता है ।