अम्हहिं जाणिउ एकु जिणु जाणिउ देउ अणंतु ।
णचरिसु मोहें मोहियउ अच्छइ दूरि भमंतु ॥58॥
अन्वयार्थ : हमने एक जिन को जान लिया तो अनंत देव को जान लिया; इसके जाने बिना मोह से मोहित जीव दूर भ्रमण करता है ।