अप्पा केवलणाणमउ हियडइ णिवसइ जासु ।
तिहुयणि अच्छइ मोक्कलउ पाउ ण लग्गइ तासु ॥59॥
अन्वयार्थ : केवलज्ञानमय आत्मा जिसके हृदय में निवास करता है, वह तीन लोक में मुक्त रहता है और उसे कोई पाप नहीं लगता ।