खंतु पियंतु वि जीव जइ पावहि सासयमोक्खु ।
रिसहु भडारउ किं चवइ सयलु वि इंदियसोक्खु ॥63॥
अन्वयार्थ :
अरे जीव ! यदि तू खाता-पीता हुआ भी शाश्वत मोक्ष को पा जाय तो भट्टारक ऋषभदेव ने सकल इन्द्रिय-सुखों को क्यों त्यागा ?