जसु मणि णाणु ण विप्फुरइ सव्व वियप्प हणंतु ।
सो किम पावइ णिच्चसुहु सयलइं धम्म कहंतु ॥65॥
अन्वयार्थ :
जिसके मन मे, सब विकल्पों का हनन करनेवाला ज्ञान स्फुरायमान नहीं होता, वह अन्य सब धर्मों को करे तो भी नित्य-सुख कैसे पा सकता है ?