जसु मणि णिवसइ परमपउ सयलइं चित चवेवि ।
सो पर पावइ परमगइ अठ्ठइं कम्म हणेवि ॥66॥
अन्वयार्थ :
सब चिन्ताओं को छोडकर जिसके मन में परमपद का निवास हो गया, वह जीव आठ कर्मों का हनन करके परमगति को पाता है ।