अप्पा दंसणणाणमउ सयलु वि अण्णु पयालु ।
इय जाणेविणु जोइयहु छंडहु मायाजालु ॥69॥
अन्वयार्थ : आत्मा ज्ञान-दर्शनमय है, अन्य सब जंजाल है -- ऐसा जानकर हे योगीजनों ! मायाजाल को छोडो ।