अप्पा मिल्लिवि जगतिलउ जो परदव्वि रमंति ।
अण्णु कि मिच्छादिट्ठियहं मत्थइं सिंगइं होंति ॥70॥
अन्वयार्थ : जगतिलक आत्मा को छोड़कर जो पर-द्रव्य में रमण करते हैं..... तो क्या मिथ्याद्रष्टियों के माथे पर सींग होते होंगे ? (अर्थात्‌ श्रेष्ठ आत्मा को छोड़कर पर में रमण करते हैं, वे मिथ्याद्रष्टि ही हैं ।)