+ गाथा ७१-८० -
अप्पा मिल्लिवि जगतिलउ मूढ म झायहि अण्णु ।
जि मरगउ परियाणियउ तहु किं कच्चहु गण्णु ॥71॥
अन्वयार्थ : हे मूढ ! जगतिलक आत्मा को छोड़कर तू अन्य किसी का ध्यान मत कर । जिसने मरकतमणि को जान लिया, वह क्‍या कांच को कुछ गिनता है ?