सुहपरिणामहिं धम्मु वढ असुहइं होइ अहम्मु ।
दोहिं मि एहिं विवज्जियउ पावइ जीउ ण जम्मु ॥72॥
अन्वयार्थ : हे वत्स ! शुभ परिणाम से धर्म (पुण्य) होता है और अशुभ परिणाम से अधर्म (पाप) होता है (इन दोनों से तो जन्म होता है), किन्तु इन दोनों से विवर्जित जीव पुनः जन्म धारण नहीं करता, मुक्ति प्राप्त करता है ।