अप्पाए वि विभावियइं णासइ पाउ खणेण ।
सुरु विणासइ तिमिरहरु एक्कल्लउ णिमिसेण ॥75॥
अन्वयार्थ :
जैसे सूर्य, घोर अन्धकार को एक निमेषमात्र में नष्ट कर देता है, उसीप्रकार आत्मा की भावना करने से पाप एक क्षण में नष्ट हो जाते हैं ।