अवतरति न यावद् वृत्तिमत्यन्तवेगा-
दनवमपरभावत्यागदृष्टान्तदृष्टिः ।
झटिति सकलभावैरन्यदीयैर्विमुक्ता
स्वयमियमनुभूतिस्तावदाविर्बभूव ॥29॥
अन्वयार्थ : [अपर-भाव-त्याग-दृष्टान्त-दृष्टिः] यह परभाव के त्याग के दृष्टान्तकी दृष्टि, [अनवम् अत्यन्त-वेगात् यावत् वृत्तिम् न अवतरति] पुरानी न हो इसप्रकार अत्यन्त वेग से जब तक प्रवृत्ति को प्राप्त न हो, [तावत्] उससे पूर्व ही [झटिति] तत्काल [सकल-भावैः अन्यदीयैः विमुक्ता] सकल अन्यभावों से रहित [स्वयम् इयम् अनुभूतिः] स्वयं ही यह अनुभूति तो [आविर्बभूव] प्रगट हो जाति है ।