चिच्छक्तिव्याप्तसर्वस्वसारो जीव इयानयम् ।
अतोऽतिरिक्ताः सर्वेऽपि भावाः पौद्गलिका अमी ॥36॥
अन्वयार्थ : [चित्-शक्ति -व्याप्त-सर्वस्व-सारः] चैतन्यशक्ति से व्याप्त जिसका सर्वस्व-सार है ऐसा [अयम् जीवः] यह जीव [इयान्] इतना मात्र ही है; [अतः अतिरिक्ताः] इस चित्शक्ति से शून्य [अमी भावाः] जो ये भाव हैं [ सर्वे अपि] वे सभी [पौद्गलिकाः] पुद्गलजन्य हैं -- पुद्गलके ही हैं ।