(उपजाति)
निर्वर्त्यते येन यदत्र किंचित्
तदेव तत्स्यान्न कथंचनान्यत् ।
रुक्मेण निर्वृत्तमिहासिकोशं
पश्यन्ति रुक्मं न कथंचनासिम् ॥38॥
अन्वयार्थ : [येन] जिस वस्तुसे [अत्र यद् किंचित् निर्वर्त्यते] जो भाव बने, [तत्] वह भाव [तद् एव स्यात्] वह वस्तु ही है, [कथंचन] किसी भी प्रकार [ अन्यत् न] अन्य वस्तु नहीं है; [इह] जैसे जगत में [रुक्मेण निर्वृत्तम् असिकोशं] स्वर्ण निर्मित म्यान को [रुक्मं पश्यन्ति] लोग स्वर्ण ही देखते हैं, (उसे) [कथंचन] किसी प्रकार से [न असिम्] तलवार नहीं देखते ।