(उपजाति)
वर्णादिसामग्र्यमिदं विदन्तु
निर्माणमेकस्य हि पुद्गलस्य ।
ततोऽस्त्विदं पुद्गल एव नात्मा
यतः स विज्ञानघनस्ततोऽन्यः ॥39॥
अन्वयार्थ : अहो ज्ञानीजनों ! [इदं वर्णादिसामग्र्यम्] ये वर्णादिक से लेकर गुणस्थानपर्यंत भाव हैं उन समस्त को [एकस्य पुद्गलस्य हि निर्माणम्] एक पुद्गल की ही रचना [विदन्तु] जानो; [ततः] इसलिये [इदं] यह भाव [पुद्गलः एव अस्तु] पुद्गल ही हों, [न आत्मा] आत्मा न हों; [यतः] क्योंकि [सः विज्ञानघनः] आत्मा तो विज्ञानघन है, ज्ञान का पुंज है, [ततः] इसलिये [अन्यः] वह इन वर्णादिक भावों से अन्य ही है ।