(अनुष्टुभ्)
घृतकुम्भाभिधानेऽपि कुम्भो घृतमयो न चेत् ।
जीवो वर्णादिमज्जीवजल्पनेऽपि न तन्मयः ॥40॥
अन्वयार्थ : [चेत्] यदि [घृतकुम्भाभिधाने अपि] 'घी का घड़ा' ऐसा कहने पर भी [कुम्भः घृतमयः न] घड़ा है वह घीमय नहीं है ( — मिट्टीमय ही है), [वर्णादिमत्-जीवजल्पने अपि] तो इसीप्रकार 'वर्णादिमान् जीव' ऐसा कहने पर भी [जीवः न तन्मयः] जीव है वह वर्णादिमय नहीं है (-ज्ञानघन ही है)