यः परिणमति स कर्ता यः परिणामो भवेत्तु तत्कर्म ।
या परिणतिः क्रिया सा त्रयमपि भिन्नं न वस्तुतया ॥51॥
अन्वयार्थ : [यः परिणमति स कर्ता] जो परिणमित होता है सो कर्ता है, [यः परिणामः भवेत् तत् कर्म] जो परिणाम है सो कर्म है [तु] और [या परिणतिः सा क्रिया] जो परिणति है सो क्रिया है; [त्रयम् अपि] यह तीनों ही, [वस्तुतया भिन्नं न] वस्तुरूप से भिन्न नहीं हैं ।