(आर्या)
नैकस्य हि कर्तारौ द्वौ स्तो द्वे कर्मणी न चैकस्य ।
नैकस्य च क्रिये द्वे एकमनेकं यतो न स्यात् ॥54॥
अन्वयार्थ : [एकस्य हि द्वौ कर्तारौ न स्तः] एक द्रव्य के दो कर्ता नहीं होते, [च] और [एकस्य द्वे कर्मणी न] एक द्रव्य के दो कर्म नहीं होते [च] तथा [एकस्य द्वे क्रिये न] एक द्रव्य की दो क्रियाएँ नहीं होती; [यतः] क्योंकि [एकम् अनेकं न स्यात्] एक द्रव्य अनेक द्रव्यरूप नहीं होता ।