(अनुष्टुभ्)
आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानादन्यत्करोति किम् ।
परभावस्य कर्तात्मा मोहोऽयं व्यवहारिणाम् ॥62॥
अन्वयार्थ : [आत्मा ज्ञानं] आत्मा ज्ञानस्वरूप है, [स्वयं ज्ञानं] स्वयं ज्ञान ही है; [ज्ञानात् अन्यत् किम् करोति] वह ज्ञान के अतिरिक्त अन्य क्या करे ? [आत्मा परभावस्य कर्ता] आत्मा परभाव का कर्ता है [अयं] ऐसा मानना (तथा कहना) सो [व्यवहारिणाम् मोहः] व्यवहारी जीवों का मोह (अज्ञान) है ।