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ज्ञानमय एव भावः कुतो भवेत् ज्ञानिनो न पुनरन्यः ।
अज्ञानमयः सर्वः कुतोऽयमज्ञानिनो नान्यः ॥66॥
अन्वयार्थ : [ज्ञानिनः कुतः ज्ञानमयः एव भावः भवेत्] यहाँ प्रश्न यह है कि ज्ञानी को ज्ञानमय भाव ही क्यों होता है [पुनः] और [अन्यः न] अन्य क्यों नहीं होता ? [अज्ञानिनः कुतः सर्वः अयम् अज्ञानमयः] तथा अज्ञानी के सभी भाव अज्ञानमय ही क्यों होते हैं तथा [अन्यः न] अन्य क्यों नहीं होते ?