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ज्ञानिनो ज्ञाननिर्वृत्ताः सर्वे भावा भवन्ति हि ।
सर्वेऽप्यज्ञाननिर्वृत्ता भवन्त्यज्ञानिनस्तु ते ॥67॥
अन्वयार्थ : [ज्ञानिनः] ज्ञानी के [सर्वे भावाः] समस्त भाव [ज्ञाननिर्वृत्ताः हि] ज्ञान से रचित [भवन्ति] होते हैं [तु] और [अज्ञानिनः] अज्ञानी के [सर्वे अपि ते] समस्त भाव [अज्ञाननिर्वृत्ताः] अज्ञान से रचित [भवन्ति] होते हैं ।