अर्थात् यथास्थितान् सर्वान् समं जानाति पश्यति ।
निराकुलो गुणी योऽसौ शुद्धचिद्रूप उच्यते ॥3॥
जो जानता है देखता, युगपत् यथा स्थित सभी ।
द्रव्यों को कहते शुद्ध चिद्रूप, निराकुल वह गुणी भी ॥३॥
अन्वयार्थ : जो पदार्थ जिस रूप से स्थित हैं उन्हें उसी रूप से एक साथ जानने देखनेवाला, आकुलता रहित और समस्त गुणों का भंडार शुद्धचिद्रूप कहा जाता है ।