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शुद्धचिद्रूप इत्युक्त ज्ञेयाः पंचार्हदादयः ।
अन्येऽपि तादृशाः शुद्ध शब्दस्य बहुभेदतः ॥8॥
नित 'शुद्ध चिद्रूप' इस कथन में पंच परमेष्ठी समझ ।
नित शुद्ध के बहु भेद से, तत्सम इतर भी सब समझ ॥८॥
अन्वयार्थ : शुद्धचिद्रूप पद से यहां पर अर्हंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधु इन पाँचों परमेष्ठियों का ग्रहण है तथा इनके समान आन्य शुद्धात्मा भी शुद्धचिद्रूप शब्द से लिये हैं, क्योंकि शुद्ध शब्द के बहुत से भेद हैं ।