
नो दृक् नो धीर्न वृत्तं न तप इह यतो नैव सौख्यं न शक्ति-
र्नादोषो नो गुणीतो न परमपुरुषः शुद्धचिद्रूपतश्च ।
नोपादेयोप्यहेयो न न पररहितो ध्येयरूपो न पूज्यो
नान्योत्कृष्टश्च तस्मात् प्रतिसमयमहं तत्स्वरूपं स्मरामि ॥9॥
चिद्रूप बिन दर्शन नहीं, नहिं ज्ञान, चारित्र नहीं तप ।
नहिं सौख्य शक्ति नहिं अदोष, न गुण परमपुरु शुद्धयुत ॥
नहिं उपादेय अहेय नहिं, पर पृथक् नहिं ध्येयरूप नहिं ।
नहिं पूज्य नहिं उत्कृष्ट कोई, याद कर चिद्रूप ही ॥९॥
अन्वयार्थ : यह शुद्धचिद्रूप ही सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र है । तप, सुख, शक्ति और दोषों का अभाव स्वरूप है। गुणवान और परम पुरुष है। उपादेय और अहेय है । पर-परिणति से रहित ध्यान करने योग्य है । पूज्य और सर्वोत्कृष्ट है । किन्तु शद्ध-चिद्रूप से भिन्न सम्यग्दर्शन आदि कोई पदार्थ नहीं, इसलिये प्रतिसमय मैं उसी का स्मरण, मनन करता हूँ ।