+ आत्मा का निश्चय करने की विधि -
स्मृतेः पर्यायाणामवनिजलभृतामिंद्रियार्थागसां च
त्रिकालानां स्वान्योदितवचनततेः शब्दशास्त्रादिकानां ।
सुतीर्थानामस्त्रप्रमुखकृतरुजां क्ष्मारुहाणां गुणानां
विनिश्चेयः स्वात्मा सुविमलमतिभिर्दृष्टबोधस्वरूपः ॥11॥
पर्याय भू जलधि विषय, पंचेन्द्रियों के पाप की ।
त्रैकाल निज पर वचन से, शब्दादि शास्त्रादि सभी ॥
सत्तीर्थ शस्त्रादि गुणों से, रोग पादप स्मृति ।
से समझ निर्मल मति द्वारा, स्वयं ज्ञान दर्शनमयी ॥११॥
अन्वयार्थ : जिनकी बुद्धि विमल है-स्व और पर का विवेक रखनेवाली है, उन्हें चाहिये कि वे दर्शन ज्ञान स्वरूप अपनी आत्मा को बाल, कुमार और युवा आदि अवस्थाओं, क्रोध, मान, माया आदि पर्यायों के स्मरण से, पर्वत और समुद्र के ज्ञान में, रूप रस गंध आदि इन्द्रियों के विषय और अपने अपराधों के स्मरण से, भूत भविष्यत्‌ और वर्तमान तीनों कालों के ज्ञान से, अपने पराये वचनों के स्मरण से, व्याकरण न्याय आदि शास्त्रों के मनन ध्यान से, निर्वाणभूमियों के देखने जानने से, शस्त्र आदि से उत्पन्न हुये घावों के ज्ञान से, भांति भांति के वृक्षों की पहिचान से और भिन्न-भिन्न पदार्थों के भिन्न-भिन्न गुणों के ज्ञान से पहिचाने ।