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ज्ञप्त्या दृक् चिदिति ज्ञेया सा रूपं यस्य वर्तते ।
स तथोक्तोऽन्यद्रव्येण मुक्तत्वात् शुद्ध इत्यसौ ॥12॥
कथ्यते स्वर्णवत् तज्ज्ञैः सोहं नान्योस्मि निश्चयात् ।
शुद्धचिद्रूपोऽहमिति षड्वर्णार्थो निरुच्यते ॥13॥
नित ज्ञान दर्शनमयी चित्, चिद्रूप जिसका रूप यह ।
वह अन्य द्रव्यों से पृथक्, इससे कहा नित शुद्ध यह ॥१२॥
कहते सुवर्ण समान ज्ञाता, वही मैं नहिं अन्य हूँ ।
छह वर्ण का यह अर्थ, निश्चय से सुसत् चिद्रूप हूँ ॥१३॥
अन्वयार्थ : ज्ञान और दर्शन का नाम चित है। जिसके यह विद्यमान हो वह चिद्रूप-आत्मा कहा जाता है। तथा जिसप्रकार कीट कालिमा आदि अन्य द्व॒व्यों से रहित स्वर्ण शुद्ध स्वर्ण कहलाता है, उसी प्रकार जिस समय यह चिद्रूप समस्त पर द्रव्यों से रहित हो जाता है उस समय शुद्ध चिद्रूप कहा जाता है । वही शुद्ध चिद्रूप निश्चय से मैं हूँ -- इस प्रकार 'शुद्धचिद्रूपोअऽम्' इन छह वर्णों का परिष्कृत अर्थ समझना चाहिये ।