+ चिदानन्द का स्वरूप नास्ति-अस्तिरूप में -
असौ अनेकरूपोऽपि स्वभावादेकरूपभाग् ।
अगम्यो मोहिनां शीघ्रगम्यो निर्मोहिनां विदां ॥16॥
तन कर्म से उत्पन्न बहुविध विक्रिया से भिन्न ही ।
जो वह चिदानन्द मैं, अनन्त दर्शनादि युक्त ही ॥१५॥
अन्वयार्थ : यह चिदानंद, शरीर और कर्मों के समस्त विकारों से रहित है और अनंत-दर्शन अनंत-ज्ञान आआदि आत्मिक गुणों से संयुक्त है ।