+ चिदानंद स्वरूप का अनन्त धर्मात्मक स्वभाव -
चिद्रूपोऽयमनाद्यंतः स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः ।
कर्मणाऽस्ति युतोऽशुद्धः शुद्धः कर्मविमोचनात् ॥17॥
चिद्रूप यह अनादिनिधन, उत्पादव्ययध्रुवता सहित ।
है बँधा कर्मों से अशुद्ध, शुद्ध कर्मों से रहित ॥१७॥
अन्वयार्थ : यह चिदानंद स्वरूप आत्मा, अनादि अनंत है । उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य तीनों अवस्था स्वरूप है। जबतक कर्म से युक्त बना रहता है, तबतक अशुद्ध और जिस समय कर्म से सर्वथा रहित हो जाता है, उस समय शुद्ध हो जाता है ।