
शून्याशून्यस्थूलसूक्ष्मोस्तिनास्तिनित्याऽनित्याऽमूर्तिमूर्तित्वमुख्यैः ।
धर्मैर्युक्तोऽप्यन्यद्रव्यैर्विमुक्तः चिद्रूपोयं मानसे मे सदास्तु ॥18॥
है शून्याशून्य स्थूल सूक्षम, अस्ति नास्ति सदा ही ।
है नित्यानित्य अमूर्त मूर्त, अनेकों धर्मोंमयी॥
पर अन्य द्रव्यों से सदा ही, पूर्णतया पृथक् सदा ।
चिद्रूप यह मेरे हृदय में, स्वयं शोभित हो सदा ॥१८॥
अन्वयार्थ : यह चेतन्य-स्वरूप आत्मा शून्यत्व, अशून्यत्व, स्थूलत्व, सूक्ष्मत्व, अस्तित्व, नास्तित्व, नित्यत्व, अनित्यत्व, अमूर्तित्व और मूर्तित्व आदि अनेक धर्मों से संयुक्त है और पर-द्रव्यों के सम्बन्ध से विरक्त है, इसलिये ऐसा चिद्रूप सदा मेरे हृदय में विराजमान रहो ।