
मृत्पिंडेन विना घटो न न पटस्तंतून् विना जायते
धातुनैर्व विना दलं न शकटः काष्ठं विना कुत्रचित् ।
सत्स्वन्येष्वपि साधनेषु च यथा धान्यं न बीजं बिना
शुद्धात्मस्मरणं विना किल मुनेर्मोक्षस्तथा नैव च ॥1॥
सब अन्य साधन हों तथापि, घट नहीं मृत् पिण्ड बिन ।
तन्तु बिना पट नहीं धातु खान बिन ज्यों काष्ठ बिन ॥
गाड़ी नहीं नहिं बीज बिन हो धान्य त्यों शुद्धात्मा ।
के स्मरण संतुष्टि बिन, नहिं मोक्ष होता मुनि का ॥२.१॥
अन्वयार्थ : जिसप्रकार अन्य सामान्य कारणों के रहनेपर भी कहीं भी असाधारण कारण मिट्टी के पिंड के बिना घट नहीं बन सकता, तंतुओं के बिना पट, खंदक के बिना गेरू आदि धातु, काष्ठ के बिना गाड़ी और बीज के बिना धान्य नहीं हो सकता, उसीप्रकार जो मुनि मोक्ष के अभिलाषी हैं, वे भी बिना शुद्धचिद्रूप के स्मरण के उसे नहीं पा सकते ।