+ शुद्ध चित् रूप की भावना से सभी दु:ख समाप्त -
क्षुत्तृट्रुग्वातशीतातपजलवचसः शस्त्रराजादिभीभ्यो
भार्यापुत्रारिनैः स्वानलनिगडगवाद्यश्वररैकंटकेभ्यः ।
संयोगायोगदंशिप्रपतनरजसो मानभंगादिकेभ्यो
जातं दुःखं न विद्मः क्व च पटति नृणांशुद्धचिद्रूपभाजां ॥3॥
नित भूख प्यास कठोर वाणी, रोग जल राजा अनिल ।
अति शीत गर्मी शस्त्र स्त्री, पुत्र अरि कंटक अनल॥
धनहीन बेड़ी डाँस मच्छर, मान भंग वियोगमय ।
गज अश्व पशुकृत अनेकों, दुख सहे यह भयभीत रह॥
इत्यादि बहु विध दु:ख भव में, भोगता पर नहिं रहें ।
सब नष्ट होते शुद्ध चिद्रूप भावना से जीव के ॥२.३॥
अन्वयार्थ : संसार में जीवों को क्षुधा, तृषा, रोग, वात, ठंडी, उष्णता, जल, कठोर वचन, शस्त्र, राजा, स्त्री, पुत्र, शत्रु, निर्धनता, अग्नि, बेड़ी, गौ, भैंस, धन, कंटक, संयोग, वियोग, डाँस, मच्छर, पतन, धूलि और मानभंग आदि से उत्पन्न हुये अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं, परन्तु न मालूम जो मनुष्य शुद्ध-चिद्रूप के स्मरण करने वाले हैं उनके वे दुःख कहाँ विलीन हो जाते हैं ?