+ चिद्रूप के ध्यान से प्रगट सुख की महिमा -
सौख्यं मोहजयोऽशुभास्त्रवहतिर्नाशोऽतिदुष्कर्मणा-
मत्यंतं च विशुद्धता नरि भवेदाराधना तात्त्विकी ।
रत्नानां त्रितयं नृजन्मसफ लं संसारभीनाशनं
चिद्रूपोहमितिस्मृतेश्च समता सद्भ्यो यशःकीर्त्तनं ॥5॥
'चिद्रूप मैं' यों स्मरण से, सौख्य हो मोहादि पर ।
हो विजय पापास्रव अति दुष्कर्म नष्ट विनष्ट भय ॥
अतिशय विशुद्धि वास्तविक, आराधना सद् रत्नत्रय ।
हो सफलता नर जन्म की, समता सभी में यश कथन ॥२.५॥
अन्वयार्थ : 'मैं शुद्धचिद्रूप हूँ' ऐसा स्मरण होते ही नानाप्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है । मोह का विजय, अशुभ आस्रव और दुष्कर्मों का नाश, अतिशय विशुद्धता, सर्वोत्तम तात्विक आराधना, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र रूपी रत्नों की प्राप्ति, मनुष्य जन्म की सफलता, संसार के भय का नाश, सर्व जीवों में समता और सज्जनों के द्वारा कीर्ति का गान होता है ।