
क्व यांति कार्याणि शुभाशुभानि क्व यांति संगाश्चिदचित्स्वरूपाः ।
क्व यांति रागादय एव शुद्ध चिद्रूपकोहंस्मरणे न विद्मः ॥8॥
मैं शुद्ध चिद्रूपी सदा, इस ध्यान में दिखते नहीं ।
शुभ अशुभ कर्म, सभी परिग्रह, राग आदि भी सभी ॥२.८॥
अन्वयार्थ : हम नहीं कह सकते कि -- 'शुद्धचिद्रूपोहं' मैं शुद्धचित्स्वरूप हूँ, ऐसा स्मरण करते ही शुभ-अशुभ कर्म, चेतन अचेतनस्वरूप परिग्रह और राग, द्वेष आदि दुर्भाव कहाँ लापता हो जाते हैं ?