+ ध्यानों में शुद्धात्मा का ध्यान सर्वोत्तम -
मेरुः कल्पतरुः सुवर्णममृतं चिंतामणिः केवलं
साम्यं तीर्थंकरो यथा सुरगवी चक्री सुरेन्द्रो महान् ।
भूभृद्भूरुहधातुपेयमणिधीवृत्ताप्तगोमानवा-
मर्त्येष्वेव तथा च चिंतनमिह ध्यानेषु शुद्धात्मनः ॥9॥
ज्यों पर्वतों में मेरु तरुओं में कलपतरु धातु में ।
उत्तम सुवर्ण सुज्ञान में कैवल्यज्ञान चरित्र में ॥
समता रतन में चिन्तामणि गायों में सुरधेनु सदा ।
मनुजों में चक्री आप्त में हैं तीर्थकर अमृत कहा ॥
सब पेय में सब देवगण में इन्द्र सर्वोत्तम कहा ।
त्यों सभी ध्यानों में परम चिद्रूप ध्यान सदा कहा ॥२.९॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार पर्वतों में मेरु, वृक्ष में कल्पवृक्ष, धातुओं में स्वर्ण, पीने योग्य पदार्थों में अमृत, रत्नों में चिन्ता-मणिरत्न, ज्ञानों में केवलज्ञान, चारित्रों में समतारूप चारित्र, आप्तों में तीर्थंकर, गायों में कामधेनु, मनुष्यों में चक्रवर्ती और देवों में इन्द्र महान और उत्तम हैं उसीप्रकार ध्यानों में शुद्धचिद्रूप का ध्यान ही सर्वोत्तम है ।