
रेणूनां कर्मणः संख्या प्राणिनो वेत्ति केवली ।
न वेद्मीति क्व यांत्येते शुद्धचिद्रूपचिंतने ॥12॥
नित जीव के कर्मों की संख्या, केवली ही जानते ।
वे भी चले जाते सभी, चिद्रूप शुध के ध्यान से ॥२.१२॥
अन्वयार्थ : आत्मा के साथ कितने कर्म की रेणुओं का संबंध होता है ? इस बात की सिवाय केवली के अन्य कोई भी मनुष्य गणना नहीं कर सकता; परन्तु न मालूम शुद्धचिद्रूप की चिन्ता करते ही वे अगणित भी कर्मवर्गणायें कहां लापता हो जाती हैं ?