+ इसका स्मरण ही सर्वाेत्कृष्ट स्मरण -
उत्तमं स्मरणं शुद्धचिद्रूपोऽहमितिस्मृतेः ।
कदापि क्वापि कस्यापि श्रुतं दृष्टं न केनचित् ॥14॥
शुद्धचिद्रूपसदृशं ध्येयं नैव कदाचन ।
उत्तमं क्वापि कस्यापि भूतमस्ति भविष्यति ॥15॥
'मैं शुद्ध चिद्रूपी' सदा, स्मृति सर्वोत्तम कही ।
इसके अलावा अन्य कुछ, उत्तम सुना देखा नहीं ॥२.१४॥
इस शुद्ध चिद्रूप के समान, न हुआ है होगा नहीं ।
कुछ अन्य उत्तम ध्येय इससे, इसे ही ध्याओ सभी ॥२.१५॥
अन्वयार्थ : 'मैं शुद्धचिद्रूप हूं' ऐसा स्मरण ही सर्वोत्तम स्मरण माना गया है; क्योंकि उससे उत्तम स्मरण कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थान पर हुआ, किसी ने भी न सुना और न देखा है ।
शुद्धचिद्रूप के समान उत्तम और ध्येय (ध्याने योग्य) पदार्थ कदाचित् कहीं न भी हुआ, न है और न होगा ।