
ये याता यांति यास्यंति योगिनः शिवसंपदः ।
समासाध्यैव चिद्रूपं शुद्धमानंदमन्दिरं ॥16॥
शिव सम्पदा साधक हुए जो, हो रहे हैं होंयगे ।
वे शुद्ध आनन्दधाम यह, चिद्रूप ध्याने से हुए ॥२.१६॥
अन्वयार्थ : जो योगी मोक्ष नित्यानंदरूपी संपद्धि को प्राप्त - हुये, होते हैं और होंगे, उसमें शुद्धचिद्रूप की आराधना ही कारण है। बिना शुद्धचिद्रूप की भलेप्रकार आराधना के कोई मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता; क्योंकि यह शुद्ध चिद्रूप ही आनन्द का मन्दिर है - अद्वितीय नित्य आनन्द प्रदान करनेवाला है ।