+ सम्पूर्ण जिनागम के एक मात्र उपादेय -
द्वादशांगं ततो बाह्यं श्रुतं जिनवरोदितं ।
उपादेयतया शुद्धचिद्रूपस्तत्र भाषितः ॥17॥
सब जिन कथित अंग बाह्य, अंग प्रविष्ट श्रुत में नित कहा ।
बहु विविध में से ग्राह्य है, बस शुद्ध चिद्रूपी सदा ॥२.१७॥
अन्वयार्थ : भगवान जिनेन्द्र ने अंगप्रविष्ट (द्वादशांग) और अंगबाह्य दो प्रकार के शास्त्रों का प्रतिपादन किया है । इन शास्त्रों में यद्यपि अनेक पदार्थों का वर्णन किया है; तथापि वे सब हेय (त्यागने योग्य) कहे हैं और उपादेय (ग्रहण करने योग्य) शुद्धचिद्रूप को बतलाया है ।