वार्तादिभिर्यदि धनं नियत जनानाम्‌,
निस्व कथ भवति कोऽपि कृषीवलादि: ।
ज्ञात्वेति रे! मम वच चतुरास्स्व पुण्ये,
पुण्यैर्विना न हि भवन्ति समीहितार्था ॥4॥
अन्वयार्थ : धनोपार्जन के लिए अहेतुकर बातचीत आदि से लोगों के लिए यदि कही सोना-चांदी आदि पदार्थ नियम से प्राप्त होते हो, तो कृषक आदि कोई भी व्यक्ति धनरहित कैसे होता ? ऐसा मेरा कथन जानकर अरे विवेकयुक्त ! पुण्य के अनुष्ठान में स्थित रहो, (क्योकि) पुण्योदय के बिना वांछित पदार्थ प्राप्त नही होते हैं ।