एह्येहि याहि सर निस्सर वारितोऽसि,
मा मन्दिरं नरपतेर्विश रे विशंकम् ।
इत्यादि सेवनफलं प्रथमं लभन्ते,
लब्ध्वापि सा यदि चला सफला कथं श्री ॥6॥
अन्वयार्थ : आओ-आओ, कुछ आगे बढ़ो, समीप मत जाओ, तुम निवारित हो, मना किये गये हो न ! अरे ! राजा के महल के अन्दर शंकारहित होकर प्रवेश मत करो -- ऐसे बहुत प्रकार के राजदरबार में उपस्थित होने के फल को सर्वप्रथम प्राप्त करते हैं । यदि प्राप्त करने के बाद भी वह लक्ष्मी चंचलित होती है, तो वह सफल कैसे होगी ?