+ बहिर्मुख विश्व की दुरवस्था -
अज्ञान-घोरसरिदम्बुनिपातमूर्ति,
दुर्मोच-मोहगुरुकर्दम-दूरमार्गम् ।
जन्मान्तकादिमकरैरुरुगृह्यमाणम्‌,
विश्वं निरीशमवश सहतेऽति-दु:खम्‌ ॥15॥
अन्वयार्थ : विपरीतज्ञानरूपी गहरी नदी के जल में गिरायी गयी मूर्ति के समान ही (अपने आपको) छुडाने में असमर्थ (तथा) दर्शन-चारित्र-मोहनीय रूपी अत्यधिक कीचड (दलदल) से पार को न प्राप्त कर सकनेवाला तथा उत्पत्ति-विनाश (जन्म-मरण) आदि क्रूर मगरमच्छों के द्वारा अच्छी तरह पकडा जाता हुआ (यह) सम्पूर्ण जीव-जगत्‌ अनाथ व्यक्ति के समान वशरहित (बेबस) होकर अत्यन्त दु:ख सहन कर रहा है -- ऐसा साक्षात्‌ देखो ।