+ मोह-बैरी को जीतने का उपाय -
मुक्त्वाऽलसत्वमधिसत्त्वं-बलोपपन्न,
स्मृत्वा परा च समतां कुलदेवतां त्वम्‌ ।
सज्ज्ञानचक्रमिदमग ! गृहाण तूर्णम्,
अज्ञानमंत्रियुतमोहरिपूपमर्दि ॥19॥
अन्वयार्थ : आलस्य भाव को छोडकर निज परमात्म-तत्त्व के ज्ञान (सम्यक्त्व) रूपी सेना से युक्त होकर (उत्कृष्ट, सहज आत्मतत्त्व की निश्चल अनुभूतिरूप निश्चय-समता तथा सहकारी कारणभूत मृत्यु-जीवन, निंदा-स्तुति, शत्रु-बांधव, पत्थर-स्वर्ण एवं संसार के दु:ख-सुख आदि में समदर्शित्व भावरूप बहिरंग) समता रूपी कुलदेवता का स्मरण करके विपरीत ज्ञान (मिथ्याज्ञान) रूपी मंत्री के साथ-साथ मोहनीय जैसे शत्रु को भी पीडित (परास्त) कर सकते हो । (अत:) हे पुत्र ! सम्यग्ज्ञानरूपी चक्र-रत्न को तुम शीघ्रता से ग्रहण करो ।