सत्त्व हि केवलमलं फलतीष्टसिद्धि,
युक्तं तया समतया यदि क परस्ते ?
एतद्-द्वयेन सहितं यदि बोधरत्नम्‌,
एकस्त्वमेव पतिरग चराचराणाम् ।१20॥
अन्वयार्थ : सत्त्व (निजपरमात्मतत्त्व का रुचिरूप निश्चय-सम्यक्त्व) वस्तुत: अकेला ही इष्टसिद्धि (मोहनाश को) पर्याप्त है। यदि उस पूर्वोक्त समता से युक्त है तो तुमसे श्रेष्ठ कौन हो सकता है ? इन दोनों के साथ यदि ज्ञानरत्न हो (तो) हे पुत्र ! तुम अकेले ही सम्पूर्ण चराचर रूप संसारी जीवों के समूह के स्वामी होवोगे ।